शहर की भीड़-भाड़ से दूर, किसी सुंदर एवम् प्रदूषण-रहित प्राकृतिक स्थान में. गुरुकुल के (मैदानी क्षेत्र में कम से कम 25 एकड़, पहाड़ी क्षेत्र में लगभग 100 एकड़ क्षेत्र के)विस्तृत प्राँगण में बसा हुआ सुरम्य नैसर्गिक क्षेत्र. पहाड़िंयों, नदियों, झरनों, वृक्षों एवम् फूलों के बीच बसा एक ऐसा उपवन, जहाँ विद्यार्थी रह सकें, खेल सकें, दौड़ सकें; आनंदपूर्वक अपने सहज विकास को प्राप्त कर सकें.
नवगुरुकुल का प्रांगण विस्तृत, विशाल एवं प्राकृतिक होगा. छात्रों को न तो जगह कम पड़े, न ही समयानुसार खेल-कूद पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध हो. विशाल प्रांगण में दौड़ने-भागने की विस्तृत जगह, भिन्न-भिन्न खेलों के लिए भिन्न-भिन्न खेल के मैदान इत्यादि तो हों ही सही, वातावरण में भी ऐसी शुद्धता हो कि वहाँ श्वास भर लेने मात्र से ही स्फूर्ति का संचार हो. यदि गुरुकुल ऐसे स्थान पर है जहां अत्याधिक गर्मी अथवा सर्दी पड़ती हो तो उसी मौसम में कक्षाएं लगाई जाएँ जो सम-शीतोष्ण (moderate) हो.
स्थान ऐसा अवश्य हो जहाँ बिजली, पानी एवं आवागमन की सुविधा हो. सुरक्षित स्थान हो, जहां क़ानून-व्यवस्था अच्छी हो. आस-पास फैक्ट्रियां न हों, न शीघ्र बनने की संभावना हो. विद्यार्थी, शिक्षक एवं अन्य कर्मचारी वहीं रहें. गुरुकुल का प्रांगण एक छोटे से शहर की तरह हो जिसमें आवश्यकता के सभी वस्तुएं प्राप्त हो जाती हों.